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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[ प्रथम
जानेके बाद उन्होंने सब लोगों को पवित्र जीवन व्यतीत करनेका उपदेश दिया । आपके उपदेश से हजारों पुरषों तथा स्त्रियोंने पवित्र जीवन व्यतीत करना आरम्भ किया । दीर्घ काल तक विहार करनेके बाद जब श्रीपार्श्वनाथ भगवान् को अपना निर्वाण-काल समीप दिखाई दिया, तब वे संमेदशिखरपर चले गये । इस पर्वतको अजितनाथ - प्रभृति तीर्थंकरोंका सिद्धि-स्थान समझ कर भगवान्ने यहीं निवास कर अनशन प्रारम्भ किया । श्रावण शुक्ल ८ मी को आज ( वि० सं० १९८६ ) से २७८१ पूर्व विशाखा नक्षत्र में भगवान्ने पहले मन-वचन के योगका निरोध किया । क्रमशः भगवान्ने शुक्लध्यान करते हुये, पंच हस्वाक्षर प्रमाण-कालका आश्रय कर समस्त कर्मों को क्षीण करते हुये संसारके समस्त दुःखों और कर्मों से रहित हो अचल, अरुज, अक्षय, अनन्त, अव्याबाध मोक्ष पद प्राप्त किया।
अन्तमें २४ वें तीर्थङ्कर भगवान् महावीर हुए। मगधदेश में, जिसकी कि राजधानी 'क्षत्रिय - कुण्ड' थी, श्रीसिद्धार्थ नामके राजा राज्य करते थे । वे बड़े ही धर्मात्मा और न्यायी राजा थे । उनकी 'श्रीत्रिशलादेवी' नामकी पट्टरानी थीं। वह बड़ी सुन्दर और योग्य महिला थीं। वे दोनों अपना जीवन आनन्द-पूर्वक बिता रहे थे ।
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एक रात्रिको उन्होंने कई बड़े-बड़े सुन्दर स्वप्न देखे । राजाने पण्डितोंसे उन स्वप्नोंका अर्थ पूछा । उसपर पण्डितोंने कहा कि महाराज ! आपके बड़ा पराक्रमी और महावीर पुत्र होगा।