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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [प्रथम इतने में ही श्रीकृष्णचन्द्रजी और और-और लोग आये । उन्होंने बहुतेरा समझाया, पर उन्होंने किसीकी भी न मानी और साधुपना लेनपर आरूढ़ हो गये। यह हाल सुनकर राजमतीजी बेहोश हो गई और बड़ा पश्चात्ताप करने लगी। तब उन्होंने भी यह निश्चय किया कि जब मेरे स्वामी-प्राणनाथ अपनी आत्मा को सुधारना चाहते हैं तो मुझको भी वही कार्य करना योग्य है। तदनुसार उन्होंने भी साधुपना लेना ठान लिया। श्रीनेमिनाथजी का दीक्षा-महोत्सव बड़ो धूम-धामस किया गया । बादमें उन्होंने बड़ी तपस्या की और केवलज्ञानको प्राप्त किया। उनकी आयु एक हजार वर्षकी थी। उसमें तीन सौ वर्ष संसार में रहे और सात सौ वर्ष संयम पाल पांच सौ छत्तीस साधुओंके साथ गिरनार पर्वतसे मोक्षको पधारे अर्थात् सिद्ध-गतिको प्राप्त हुये। अबसे लगभग छियासी हजार वर्ष हुए जब श्रीनेमिनाथजीका जन्म हुआ था। ___ २३ वें तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथजी हुये। गङ्गाजीके तट पर 'वाणारसी' नामका एक बड़ा नगर है। प्राचीन समयमें करीब तीन हजार वर्ष हुये, जब एक बड़े पराक्रमी और प्रतिभाशाली अश्वसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सबसे बड़ी प्राणबल्लभा रानीका नाम वामादेवी था। ___ये दोनों अानन्द-पूर्वक बड़े प्रेमके साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे कि एक दिन रात्रिके समय श्रीवामादेवीने एक स्वप्न देखा कि एक काला सर्प उनके पास हो कर निकल गया है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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