________________
खण्ड ]
* जैनधर्मानुसार जैनधर्मका संक्षिप्त इतिहास * २५
२२ वें तीर्थंकर श्रोनेमिनाथजीं हुये । ये राजा समुद्रपालजीके पुत्र थे । समुद्रपालजीकी पटरानीका नाम सिवादेवी था, जो नेमिनाथजीकी माता थीं। राजा समुद्रपालजीकी राजधानी सौरीपुर था, जहाँ नेमिनाथजीका जन्म हुआ था । श्रीकृष्णचन्द्रजीके पिता वसुदेवजी समुद्रपालजीके छोटे भाई थे अर्थात् नेमिनाथजी श्रीकृष्णचन्द्रजीके चचाजात भाई थे । श्रीकृष्णजीको वासुदेवकी पदवी थी । श्रीनेमिनाथजीका चित्त शुरू से ही संसार को त्यागने का हो रहा था, पर बहुत आग्रह करनेपर वह शादी करने के लिए तैयार हुए थे । उनकी सगाई मथुराके राजा उग्रसेनकी कन्या श्रीराजमतीजी के साथ निश्चित हुई थी । शादीका मुहूर्त्त जल्द से जल्द निश्चित किया गया और बड़े समारोह के साथ श्रीकृष्णचन्द्रजीने वसुदेवजी, समुद्रपालजी, पाँचों पाण्डव वा अनेक प्रसिद्ध यादव- वंशियोंके साथ बरात की तैयारी की और मथुरा नगरीको रवाना हुये । जब श्रीनेमिनाथजी के हाथीने शहर में प्रवेश किया तो उन्होंने एक स्थानपर एक बाड़ेसे अनेक जीवोंकी चिंघाड़ और चिल्लाहट श्राते सुनी, तब उन्होंने पीलवान् से पूछा कि यह किसका शब्द है ? तो उसने विनय-पूर्वक अर्ज किया कि बारात में बहुत से मांसाहारी भी आये हैं, उनके खानेकेलिये यहाँ जानवर इकट्ठे किये गये हैं, तो फ़ौरन उन्होंने ख्याल किया कि मेरी शादी के कारण ये सारे वध किये जायेंगे इस कारण शादी नहीं करना - यह सोचकर उन्होंने फौरन हाथी फैरनेको कहा,