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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास -
तृतीय
है और तब अनन्त गुणात्मक यथाख्यातचारित्र, अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन और अनन्तदानवीर्य आदि लब्धियोंकी उन्हें प्राप्ति होती है । घातीय कोंके क्षय करनेसे उन्हें 'अरिहन्त पद'की प्राप्ति होती है। अरिहन्त भगवान् बारह गुण सहित होते हैं और अठारह दोष रहित होते हैं।
मोहनीय कर्मके क्षय होनेसे अनन्तगुणात्मक यथाख्यातचारित्र वाले होते हैं । ज्ञानावरणीय कर्मके क्षय होनेसे अनन्तकेवलज्ञान की प्राप्ति होती है, जिससे समस्त संसारकीरूपी और अरूपीसमस्त रचनाके द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावको जानने लग जाते हैं। दर्शना. घरणीय कर्मके क्षय होनेसे केवलदर्शनकी प्राप्ति होती है, जिससे संसारकी समस्त रूपी और अरूपी वस्तुओंको देखने लगते हैं। अन्तराय कर्मके क्षय होनेसे अनन्त दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य लब्धिकी प्राप्ति होती है; अनन्त तेजस्वी होते हैं; अनन्त बल पुरुषार्थके धनी होते हैं; अनन्त क्षायिक सम्यक्त्व
& "तुत्पिपासाजरातक,-जन्मान्तकभयस्मयाः । न रागद्वेष मोहारच, यस्याप्तः स प्रकीर्यते ॥"
-स्वामी समन्तभद्राचार्य । अर्थात् जिसमें चुधा, नृपा, बुढ़ापा, रोग, जन्म, मरण, भय, गर्व, राग, द्वेष, मोह, (च) से चिन्ता, मद, अरति, खेद, स्वेद, निद्रा और आश्चर्य, ये अठारह दोष नहीं होते, वह 'अरिहन्त' है।