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________________ *परमेष्ठी अधिकार * ३६५ आवश्यक प्रतीत होता है कि उक्त पाँच परमेष्ठियोंके संक्षेपमें कुछ गुण बताये जायें। क्योंकि बिना गुण जाने किसीमें भी भक्तिभावका होना असम्भव है। णमो अरिहंताणं अरिहंतजी जिनको तीर्थंकर आदि भी कहते हैं, उनमें निम्नलिखित गुण, अतिशय आदि होते हैं। जिस प्रकार संसारमें चक्रवर्ती अनेक ऋद्धि-सिद्धियों और वैभवके धनी होते हैं, उसी प्रकार धार्मिक संसारके अरिहन्त देव चक्रवर्ती होते हैं। जिस प्रकार स्वर्ण और पारा आँचके प्रयोगसे एक अपूर्व रसायन बन जाता है, उसी प्रकार जो प्राणी निम्नलिखित बीस बातोंमेंसे एक बातका भी दत्तचित्त होकर पाराधन कर लेता है। वह तीर्थंकर पदका बन्ध कर लेता है और वह तीसरे भवमें तीर्थंकर पदको अवश्य प्राप्त करके स्वयम् भवसागरसे पार होता है और अनेक प्राणियोंको पार लगाता है। वे बीस बातें निम्न प्रकार हैं: १-अरिहन्त, २-सिद्ध, ३-प्रवचन, ४-शास्त्र, ५-स्थविर-वृद्ध, ६-बहुसूत्री-पण्डित और७-तपस्वी, इन सातोंकी • दत्तचित्त होकर सेवा करनेसे;८-बार-बार ज्ञान में उपयोग लगानेसे; -सम्यक्त्व निर्मल पालनेसे; १०-गुरु भादि पूज्य जनोंका
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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