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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास
[तृतीय
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तो फिर वह प्रमादों-प्रलोभनोंको पारकर विशेष अप्रमत्त-अवस्था प्राप्त कर लेती है। इस अवस्थाको पाकर वह ऐसी शक्ति-वृद्धिकी तैयारी करती है कि जिससे शेष रहे-सहे मोहबलको नष्ट किया जा सके । मोहके साथ होनेवाले भावी युद्धकेलिये की जानेवाली तैयारीकी इस भूमिको पाठवाँ गुणस्थान कहते हैं। ___ पाठवें गुणस्थानसे आगे बढ़नेवाली प्रात्मायें दो श्रेणियोंमें विभक्त हो जाती हैं। एक श्रेणीवाली तो ऐसी होती हैं जो मोहको एक बार सर्वथा दबा लेती हैं, पर उसे निर्मूल नहीं कर पातीं। अतएव जिस प्रकार किसी बर्तनमें भरी हुई भाप कभी-कभी अपने वेगसे ढक्कनको नीचे गिरा देती है अथवा जिस प्रकार राखके नीचे दबी हुई अग्नि हवाका कोरा लगनेसे अपना कार्य करने लगती है, उसी प्रकार पहिले दबा हुआ मोह आन्तरिक युद्धमें थकी हुई उन प्रथम श्रेणीवाले आत्माओंको अपने वेगसे नीचे पटक देता है। एक बार सर्वथा दबाये जानेपर भी मोह, जिस भूमिकासे आत्माको हार दिलाकर नीचे की ओर पटकता है वही ग्यारहवाँ गुणस्थान है । मोहको क्रमशः दबाते-दबाते सर्वथा दबाने तकमें आत्माको उत्तरोत्तर अधिक-अधिक विशुद्धतावाली दो भूमिकाएँ अवश्य प्राप्त करनी पड़ती हैं, जो नौवाँ तथा दसवाँ गुणस्थान कहलाता है। ग्यारहवाँ गुणस्थान अधःपतनका गुणस्थान है। क्योंकि उसे पानेवाली आत्मा आगे न बढ़कर एक बार तो अवश्य नीचे गिरती है।