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खण्ड
* लेश्या अधिकार *
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उत्तर-उत्तर पुरुषोंके परिणामों में संक्लेशकी न्यूनता और मृदुताकी अधिकता पाई जाती है। प्रथम पुरुपके परिणामोंको कृष्ण लेश्या, दूसरेके परिणामोंको नील लेश्या, तीसरेके परिणामों को कपोत लेश्या, चौथेके परिणामोंको तेजो लेश्या, पाँचवेंके परिणामोंको पद्म लेश्या और छठेके परिणामोंको शुक्ल लेश्या समझना चाहिये।
अब अलग-अलग लण्याओंके पुद्गलोंका वर्ण व प्रात्मा पर प्रभाव व उनके प्रभावसे प्राणी कैसे-कैसे अशुभ और शुभ कम करता है. उसका वर्णन करते हैं:
१-काजलके समान कृष्णवर्णके लेश्या जातीय पुद्गलोंके सम्बन्धसे आत्मामें ऐसा परिणाम होता है, जिससे हिंसा आदि पांचों श्रावोंमें प्रवृत्ति होती है। मन, वचन तथा शरीरका संयम नहीं रहता; स्वभाव क्षुद्र बन जाता है; गुण-दोषकी परीक्षा किये बिना ही कार्य करनेकी आदतसी हो जाती है और क्रूरता श्रा जाती है. यह परिणाम कृष्ण लेश्या' है। इस लेश्यामें मरने वाला जीव सातवें नरक तक पहुँचता है और तेतीस सागरकी आयुःस्थिति प्राप्त करता है। ___२--आशोक वृक्षके समान नीले रंगके लेश्या-जातीय पुद्गलोंसे ऐसा परिणाम प्रात्मामें उत्पन्न होता है कि जिससे ईर्ष्या, असहिष्णता तथा माया-कपट होने लगते हैं; निर्लजता प्रा जाती है; विषयोंकी लालसा प्रदीत हो उठती है; रस-लोलुपता