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खण्ड
* भावनाएँ *
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धना कर वे मोक्ष गये । इत्यादि बातोंका वर्णन अन्य जैन शास्त्रों से समझ लेना चाहिये।
(६) अशुचि-यह शरीर हाड़, माँस, मल, मूत्र आदि अशुचि पदार्थासे भरा हुआ महा अपवित्र है। इस प्रकार अपने शरीरके स्वरूपका चिन्तन करना 'अशुचि' भावना है।
किस प्रकार 'सनत्कुमार' चक्रवर्तीने अपने स्वरूपका मद कियाः किस प्रकार उनको कुष्ट रोग हुआ और किस प्रकार मंयम पाल नीरोग हो उन्होंने मोक्षको प्राप्त किया । इत्यादि वर्णन अन्य जैन शाम्रास जानना चाहिये ।
(७) आम्रव-मिथ्यात्व. अविरति, कपायादिकांसे कर्मोका श्राव होता है। श्राव ही संसार में परिभ्रमणका कारण और
आमाके गुणों का घातक है। इस प्रकार अाम्रवके स्वरूपका चिन्तन करना 'मानव' भावना है।
किस प्रकार 'समुद्रपाल ने चोरको बन्धनमें देखकर अशुभ कर्मा का ख्याल किया: किस प्रकार प्रास्रव भावना भाते हुए उन्होंने वैराग्य प्राप्त किया और किस प्रकार वे दीक्षा धारण कर, कर्म क्षय कर मोक्ष गये । इत्यादि बातों को अन्य जैन शास्त्रोंसे समझ लेना चाहिये।
(८) *मंवर-गुप्ति. सामेति, धर्म, अनुप्रक्षा, परीपहसन आदिसे आते हुए कर्म रुकते हैं। इस प्रकार संवरके स्वरूपको चिन्तन करना 'संवर' भावना है।
* "प्रानवनिरोधः संवरः", "स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रक्षापरीपहजपचारित्रैः।"
-उमास्वाति ।