SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ** जेल में मेरा जैनाभ्यास # [तृतीय ( ४ ) एकत्व - जन्म, जरा, मरण, रोग, वियोगादि महा दुःखोंमें अपने को असहाय - एकाकी चिन्तन करना अर्थात् सुखदुःख सहने में मैं अकेला हूँ, मेरा कोई साथी नहीं है, इत्यादि विचार करना 'एकत्व' भावना है। ३२४ किस प्रकार 'मृगापुत्र कुमार को मुनि महाराजको देखकर जातिस्मरण ज्ञान हुआ; किस प्रकार उन्होंने अपने माता-पिता से आज्ञा माँगी और किस प्रकार इस जगत् में कोई किसीका नहीं है- धन धरती में, पशु स्थानमें, धान्य कोठो में, वस्त्र गठरी में, स्त्री दरवाजे तक, माता बाजार तक, स्वजन श्मशान तक और यह शरीर चिता तक जायगा, आगे शुभाशुभ कर्मके साथ जीव अकेला ही जायगा, इस प्रकार एकत्व भावना भाते हुए संयम धारण कर एकलविहारी हो मोक्ष प्राप्त की । इत्यादि बातोका वर्णन अन्य जैन शास्त्रोंसे जान लेना चाहिये । ( ५ ) अन्यत्व - शरीर-कुटुम्बादिसे अपने स्वरूपको भिन्न चिन्तन करना 'अन्यत्व' भावना है। किस प्रकार 'नमि' राजाको दाहवर उत्पन्न हुआ; किस प्रकार चन्दन घिसनेमें रानियोंके एक-एक कङ्गनका बजना बन्द हो गया; किस प्रकार अन्यत्व भावना भाते हुए उन्हें नींद आ गई और योग चला गया; किस प्रकार उन्होंने संयम धारण कर इन्द्रको उसके प्रश्नोंका उत्तर दिया और किस प्रकार संयम धारा
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy