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________________ भावनाएँ ततस्त्रकारोंने मोक्षार्थी प्राणियोंकेलिये बारह प्रकारकी " भावनाओं (अनुप्रेक्षाओं) का वर्णन किया है। वे इस प्रकार हैं १ अनित्य, २ अशरण, ३. संसार, ४ एकत्व, ५ अन्यत्व, ६ अशचि. ७ श्राव, ८ संवर, ह निजरा. १० लोक. ११ बोधिदुर्लभ और १२ धर्मस्त्राख्यातत्व* । (१) अनित्य--इन्द्रियोंके विषय, धन, यौवन, जीवितव्य आदि पानीके बुलबुले के समान है-अस्थिर अर्थात अनित्य हैं, एसा विचार करना अनित्य भावना है। ___ यह भावना 'भरत' नामक चक्रवर्तीने भाई थी। जिसके कारण वे केवलज्ञान प्राप्त कर दम हजार मुकटबन्ध गजाओंको दीक्षा दे लक्ष पूर्वका साधुपना पाल मोक्ष पधार। किस प्रकार उनकी अंगूठी गिरी और किस प्रकार उन्होंने पुद्गल को असार समझा। इत्यादि वृत्तान्त अन्य जैन शाम्रोमें दिया हुअा है, वहाँसे समझना चाहिय। • अनिन्याशरणसंसार कन्चान्यवाशुर माश्रवसंवरनिर्जरालोकोधिदुलमधर्मस्वास्यातवानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः ।" -उमास्वति ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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