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३. काल - दिन और रात्रिका दूसरा पहर और रात्रिका चौथा पहर ध्यान करनेके वास्ते अति उत्तम बताये गये हैं ।
* ध्यानका स्वरूप *
४. भाव- मैत्रीभाव, प्रमोदभाव, करुणभाव और मध्यस्थभाव, इन चारों ही भावोंके होनेसे शुभ ध्यान ठीक तरह से ध्याया जाता है। इन चार भावनाओंको विचारते हुये जीव राग, द्वेष, विषय, कपाय, मोह आदि शत्रुओं का नाश करने में समर्थ होता है ।
धर्मध्यान
धर्मध्यान - यह ध्यान अशुभ कर्मोंका नाश करता है तथा किंचित शुभ कर्मका भी नाश करता है और निर्जरा और पुण्य प्रकृतियोंका उपार्जन करता है। धर्मध्यानके चार भेद कहे हैं:
१ - आज्ञाविचय. २ - अपायविचय, ३ - विपाकविचय और ४ -- संस्थानविचय ।
१ -- आत्माका उद्धार करने के लिये भगवान की जो आज्ञाएँ हैं, उनका आदरपूर्वक चिन्तन करनेसें, उनपर मनको एकाम करने से "आज्ञाविचय" नामक धर्मध्यानका प्रथम भेद सिद्ध होता है।
२- जब राग, द्वेप और कपाय, इन दोषोंसे होनेवाली हानियों पर विचार किया जाता है, तथा राग-द्वेषादि दोषोंकी शुद्धिकेलिये विचार किया जाता है तथा चित्तको एकाग्र किया जाता है, तब "अपायविचय” नामक धर्मध्यानका द्वितीय भेद सिद्ध होता है ।