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* जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय होते हैं और जहाँ तक कोंकी प्रबलता रहती है, वहाँ तक निरन्तर हृदयमें बेचैनी किया करते हैं।
जिन आत्माओंने उच्च स्थानकी अपेक्षासे संयम ग्रहण कर लिया है अथवा ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, मुनि आदिका भेष धारण कर लिया है. उनको तो ये दोनों निकृष्ट और बुरे ध्यान बातकी बातमें अर्थात एक क्षण में नरकगामी बना देते हैं। ___ ये दोनों ध्यान मोक्षमार्गमें मुख्य बाधक हैं। इस कारगण जो भव्य प्राणी अपने संसार को कम करना चाहते हैं, उनको इन दोनों ध्यानोंको अपने चित्त में कदापि स्थान नहीं देना चाहिये अर्थात अपने मन को इन्द्रिय, विषय, कपाय, प्रमाद आदि अशुभ कर्मोकी ओर कदापि नहीं जाने देना चाहिये । मदा शुभ भाव अथवा शुक्ल और धर्म ध्यान ध्याने रहना चाहिये । जिनका वर्णन अगले पृष्टोंमें किया जाता है। पंचम गुगाम्थानक तक ही इन ध्यानोंके रहने की संभावना है।
शुभ ध्यान शुभ ध्यान दो प्रकार के होते हैं। एक धमध्यान दमग शुक्ल ध्यान । शुभ ध्यानकी सफलताके वास्ते ज्ञानका होना अत्यन्त आवश्यक है। धर्मध्यान और शुक्लध्यान सम्बन्धी बातें, जो दोनों ध्यानों में एक सी है, पहिले हम उनका ही यहाँ वर्णन करते हैं और बादमें धर्मध्यान और शुक्लध्यानका अलग-अलग वर्णन करेंगे।