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खण्ड
• ध्यानका स्वरूप *
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तथा उनका अनुमोदन करना और ४-अपने धन और सुखोंकी * रक्षामें दत्तचित्त रहना और उनका अनुमोदन करना ।
अगर प्राणी हिंसानुबन्ध, मृपानुबन्ध, तस्करानुबन्ध और विषयसंरक्षणानुबन्ध विचागंसे बचना चाहते हैं अर्थात सुख और शान्ति चाहते हैं तो उनको गैद्रध्यान कदापि नहीं ध्याना चाहिये
और सदा धमध्यान अर्थात अच्छे व शुभ विचारोंका ध्यान करते रहना चाहिये । जैसे जहाँ तक मुमकिन हो वहाँ तक किसी प्रकार के चलत-फिरने तथा अन्य अदृश्य जीवोंकी हिंमा नहीं करनी चाहिये । यदि कोई प्राणी हिंसा करता हो तो उसे समझा बुझाकर रोकना चाहिये। कभी झट नहीं बोलना चाहिये । सदा सचाई
और इमानदारी के साथ व्यापार या अन्य कार्य करने चाहिये । किसी प्रकारकी चोरी नहीं करनी चाहिये । अथवा विश्वासघात नहीं करना चाहिये । सदा धन, स्त्री, पुत्र, ऐश्वयक रक्षणमें दत्त चिन नहीं होना चाहिये अर्थात जितनी रक्षाकी आवश्यकता है, उतना ही करते रहना चाहिये। इसके अतिरिक्त हिंसा, भूठ, चोरी और संरक्षण सम्बन्धी विचार तक मनमें नहीं लाने चाहिये और यदि अज्ञानवश उपयुक्त बुरे विचार भाभी जॉय तो तुरन्त उनको दूर कर देना चाहिये ।
स्पष्टीकरण ये बात और रौद्र ध्यान पापोंसे भरे हुये हैं। ये दोनों ध्यान बिना अभ्यासके-पूर्व कर्माके उदयसे-स्वभावसे ही उत्पन्न