________________
३००
* जेलमें मेरा जैनाभ्यास
[तृतीय
अनुराग मानता है अथवा जिसको दया कदापि नहीं आती है, वह सदा "हिंसानुबन्ध रौद्रध्यान" ध्याता रहता है । इस ध्यानको ध्यानेवाला निम्नलिखित कार्य करता रहता है:___जीवोंकी शिकार करते हुये, कल्ल करते हुये, दुःखसे चिवार मारते हुये या किसीको मरते हुये देखकर आनन्द मानता है और कहता है कि बहुत अच्छा हुआ। उसको तो यह दण्ड या तकलीफ मिलनी ही चाहिये थी। यह क्या अच्छी शिकार है ! मर्प, बिच्छू आदि हिन्सक जीवोंका मारना अति उत्तम है। नरमेध, अश्वमेध श्रादि यज्ञ करनेसे म्वर्ग मिलता है । वह हिंसा द्वारा बनी हुई वस्तुओं का उपयोग करता है । जैसे-चमड़ेके जूते, हड्डीकी चीजें, पंखोंकी वस्तुयें, रेशमके कीड़ों द्वारा बना हुआ रेशम इत्यादि वस्तुओंका उपयोग करता है या कराता है या करनेको भला मानता है। यह जीव 'हिंमानुबन्ध रौद्रध्यान'का बन्धन करता है।
२-मृषानुबन्ध-जो प्राणी सदा दृमरोंको धोखा देने व ठगनका विचार किया करता है और अमत्य कर्मो में आनन्द मानता है, वह 'मृपानुबन्ध गदध्यान' ध्याया करता है।
इस ध्यानके ध्यानेवाला व्यक्ति निम्नलिखित प्रशुभ कार्य किया करता है:-वृद्ध, गंगी या निकम्मे वरका अच्छी कन्याके माथ विवाह कराता है: गाय, घोड़ा, बैल आदि पशुओंको अच्छा कह कर बिकवाता है; नकली मालको असली कह कर और झूठे