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खण्ड ]
* मनुष्य जीवनकी सफलता #
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इस प्रकार के प्रोषधत्रत हर गृहस्थको कम-से-कम एक मासमें दो - हर महीने में हर चतुर्दशीको करना आवश्यक है और ज्यादा किये जायँ तो और अच्छा है । प्रोषध करनेके पहले शाम को और दूसरे दिन सुबह प्रतिक्रमण किया जाता है। इसकेद्वारा व्रत में अगर जानकारी में या अज्ञान में कोई-कोई दूषरण लग गया हो तो उसके लिये प्रायश्चित्त किया जाता है, ताकि भविष्य में दुबारा भूल न हो* ।
श्रावकका बारहवाँ व्रत, 'अतिथिसंविभाग' है, जिसको चौथा शिक्षाव्रत भी कहते हैं । इसका अर्थ है-साधु-साध्वियों को दान देना ।
दान दो प्रकार के होते हैं, एक सुपात्रदान दूसरा कुपात्रदान । सुपात्रदान वह है, जो साधु, मुनि, महात्माओं को दिया जाता है। क्योंकि इस दानद्वारा ऐसी आत्माओं का पोषण होता है, जिन्होंने सांसारिक सारे कार्यो को छोड़ दिया है और जो कि अपनी श्रात्मोन्नति के साधने में लगे हुये हैं। कुपात्रदान वह है, जिससे उन लोगोंका पोषण होता है, जो विषयों और संसारी राटारमन
* जो श्रावक या श्राविका श्रावकके बारह व्रत या कम धारण → करते हैं, उनकेलिये प्रतिदिन प्रातःकाल और सायंकाल प्रतिक्रमण करना ज़रूरी है। इस क्रिया केद्वारा अगर किसी व्रतमें दूषण लगा हो तो उसके लिये पश्चाताप तथा प्रायश्चित किया जाता है, ताकि भविष्य मैं ध्यान रहे ।