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खड]
* मनुष्य-
-जीवनकी सफलता #
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जाती है। इनको नियमपूर्वक ग्रहण किया जाता है और नियम पूर्वक पारण अर्थात् खान-पान किया जाता है ।
अगर उपरोक्त प्रत्याख्यानोंमें जान कर या भूलमें कोई दूषण लग जाता है तो उसका प्रायश्चित्त और पश्चात्ताप किया जाता है, ताकि भविष्य में दुबारा भूल न हो ।
ऊपर लिखे हुये व्रत - प्रत्याख्यान करनेका केवल इतना ही मतलब है कि मनुष्यका इन्द्रियों और मनपर काबू हो और त्याग तथा तपस्याका महाबरा बढ़े। इनके करने से अशुभ कर्मों के पुंजके पुंज नष्ट हो जाते हैं ।
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श्रावकका ग्यारहवाँ व्रत 'प्रोषधोपवास' है, जिसको तीसरा शिक्षाव्रत भी कहते हैं। इसका अर्थ है प्रोषध - द्वितीया - पञ्चमीअष्टमी - एकादशी - चतुर्दशी आदि पर्वके दिनों में उपवास करना । साधुपना तो जन्म पर्यन्तकेलिये ग्रहण किया जाता है और प्रोषध कुछ समयकेलिये ग्रहण किया जाता है। गृहस्थोंके लिये साधुपना धारण करना कठिन अवश्य है, पर ध्यान हर गृहस्थ अथवा श्रावकका उसी ओर रहना चाहिये कि वह कौन समय हो कि मैं संसारसे निकल कर साधुपना ग्रहण करूँ । इस व्रतके अनुसार गृहस्थ ( श्रावक या श्राविका ) एक दिन, दो दिन, चार दिन या ज्यादा दिन, जिसमें जैसी शक्ति हो, उसके अनुसार प्रोषध अथवा अस्थायी साधुपना ग्रहण करते हैं। यह व्रत कम-से-कम एक दिन