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खण्ड
मनुष्य-जीवनकी सफलता *
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intercitare
करना; ४-सामायिकको निरादार भावसे करना और ५-सामायिकका तथा उसके समयका स्मरण न रखना । सामायिकमें किसी
भी सांसारिक कार्यकी चिन्ता रखनी या कुकथा-राजकथा, *देशकथा, खोकथा और भक्तकथा करना । सामायिक करते समय सामायिक करनेवालेको बत्तीस दोष और टालने चाहिये । वे बत्तीस दोष-दस मनके, दस वचनके और बारह कायके, इस तरह होते हैं।
श्रावकका दसवाँ व्रत 'देशावकाशिक' है, जिसको दूसरा शिक्षाबत भी कहते हैं। इसका अर्थ है-देशकी मर्यादा कर लेना। इस व्रत में और छठे व्रतमें केवल इतना ही अन्तर है कि छठा व्रत जीवन पर्यन्त ग्रहण किया जाता है और यह व्रत एक दिनकेलिये ग्रहण किया जाता है।
ॐ व्रत दो प्रकारसे लिये जाते हैं--किसी वस्तु का त्याग दो प्रकारसे किया जाता है। एक जीवन पर्यन्त और दूसरा अल्पकाखकेलिये । यावजीवन त्यागको शास्त्रमें 'यम' और परिमितकालीन त्यागको 'नियम' शब्दसे कहा गया है । यथा:
"नियमो यमश्च विहितो, द्वधा भोगोपभोगसंहारे । नियमः परिमितकालो, यावजीवं यमो प्रियते ॥"
-स्वामी समन्तभद्राचार्य।