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खण्ड * मनष्य-जीवनकी सफलता* २७६
अनर्थदण्ड ब्रतके अतिचार* भी ध्यानमें रखने योग्य हैं। प्रायः लोग उनका ध्यान नहीं रखते और बेमतलब ही अपने मन, वचन और कायकी शक्तिका दुरुपयोग करते हैं। जिससे कुछ भी नतीजा नहीं निकलता । बल्कि कभी-कभी तो उल्टा नुकसान हो जाता है । वे अतिचार इस भाँति हैं:
१-कन्दर्प-रागसे हास्य-मिश्रित भण्ड-अश्लील वचन बोलना।
२-कौत्कुच्य-शरीरकी बेमतलब ही बुरी-बुरी अश्लील आकृतियाँ बनाना। ___३-मौखय-बमतलब अधिक बोलना । एक बातको अनेकानेक वार कहना । निष्प्रयोजन बोलना ।
४-अतिप्रसाधन-बिना आवश्यकताके भोग-उपभोगकी सामग्रीको बढ़ाते चले जाना ।
५-असमीक्ष्य अधिकरण-बिना प्रयोजन सोचे मन, वचन कायकी क्रियाएँ करना।
श्रावकका नवाँ व्रत 'सामायिक' है। जिसको पहिला शिक्षा व्रत भी कहते हैं। इसका अर्थ है-मनको एकाग्र करना ।
• "कन्दर्प कौत्कुच्यं, मौखर्यमतिप्रसाधनं पञ्च । असमीक्ष्य चाधिकरणं, व्यतीतयोऽनर्थदण्डकृद्विरतेः ॥
-स्वामी समन्तभद्राचार्य ।