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________________ खण्ड * मनुष्य-जीवनकी सफलता * २७३ - - तरीका यह है कि भोगकी जिन वस्तुओंका इस्तेमाल उसे करना हो, उन सबको लिख कर रख लेना चाहिये, ताकि हेर-फेर न पड़े। उपभोगकी भी ऐसी वस्तुएं इस्तेमालमें नहीं लानी चाहिये, जिनमें विशप हिंसा हो । जैसे-शम, चमड़का सामान, मील का कपड़ा आदि । इसके अलावा जिस कदर सामान बनना हो या इस्तेमाल के वास्त रखना हो, उमकी भी लिम्बित फेहरिस्त रख लेनी चाहिये, ताकि प्रतिज्ञाका उलइन न हो सके। जरूरता और इच्छाकी जितनी कमी की जाय, उतना ही अच्छा है। इसके अतिरिक्त संमार में कुछ ऐसे भी व्यापार व धन्द है. जिनमें महा हिमा होती है । जो मनुष्य अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं, उन्हें ऐसे महा हिंसक व्यापार-धन्ध भी नहीं करने चाहिये। शाम्मे से व्यापार-धन्धे कर्मादानक नामसे प्रसिद्ध है। और उनकी संख्या पन्द्रह है। यथा--- -- अंगार कम--- भट्टा लगवाकर कोयलं. मिट्टी के बर्तन, इंट, चूना इत्यादि पकवाना । २-वन कम -- जगलाम वृक्ष, घास, बॉस इत्यादि कटवाना और फलों व पुष्पाका व्यापार करना । ३-शकट कर्म-गाड़ी, ताँगा आदि सवारी अथवा उनके साधन बनाना। ४-भाट कम-गाड़ी. बैल. ऊँट स्वञ्चर इत्यादिपर माल लादना या इनको भाईपर चलाना ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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