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________________ रूण्ड] * मनुष्य जीवनकी सफलता - २६३ - (२) इत्वरिका-परिगृहीतागमन-दृसरंकी {श्चली स्त्रीके पास जाना। (३) इत्वरिका-अपरिगृहीतागमन-वेश्याके पास जाना । (४) अनङ्गक्रीडा---काम भागक अवयवोंको छोड़ कर अन्य अवयवोंसे काम क्रीड़ा करना । (५) कामर्न वाभिनिवेश-काम-भागकी तंत्र अभिलाषा करना। ___ गृहस्थों अथवा मनुष्य मात्रको सिवाय अपनी पत्नी के और स्त्रीको मिवाय अपने पति के दुसरंका चिन्तन नहीं करना चाहिये ! पुरुषको अपनी स्त्रीके सिवाय अन्य तमाम स्त्रियों को और स्त्रीको मिवाय अपने पनि अन्य तमाम पुरुषांको भाइ-बहिन. पुत्र-पुत्री और माता-पिता के तुल्य समझना चाहिये। ___प्रथम ता बहनसे मनुष्य इस व्रतका धारण ही नहीं करने और जो धारण करते हैं, उनमें भी बहुतसे मनुष्य नाना प्रकारको तर्क-वितक निकाल कर अन्य स्त्रियांस विपयसे बन करते हैं। ऐसे पुरुषांसे प्रश्न करनेपर वे यह दलीलदिया करते हैं कि हम किसी वश्याको मासिकपर रख ल तो हमारे व्रतमें दृषण नहीं लगता है या हमारा जिस कन्याके साथ सम्बन्ध हो गया है, अगर हम उसके साथ रमण करते हैं तो दृषण नहीं लगना, इत्यादि । इस प्रकारकी बातें सर्वथा वर्जनीय है। मनुष्य न्दर-सुन्दर स्त्रियों को या उनके चित्रों को देखते हैं तो तुरन्त
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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