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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * नृतीय प्रकार वर्तमान समयमें कोई चाहे कि मैं एक दिनमें अपने जीवनको सफल बना लूँ , यह असम्भव है। हाँ यदि मनुष्य इस बातको अपना उद्देश्य बना ले और लगातार उस ओर परिश्रम अथवा प्रयत्न करता रहे तो एक दिन अपने जीवनको अवश्य वह सफल बना सकता है । यह कहावत आपने सुनी होगी कि रोम एक दिनमें नहीं बनाया ..!!.6) 11a. !! It it it in t?lt s". निरन्तर, कोशिश और मेहनत करते रहनपर एक दिन रोमका नगर मंमार में सब शहरोसे प्रशस्त व बड़ा समझे जानेके योग्य मनुष्य का जीवन मानिन्द एक जहाजक है। यदि जहाजका अमान नमान. चट्टान, पानीके बड़े जानवगं, बर्फ के नेग्ने हुये पहाड़ इत्यादि से बचाता हुया और अपने बल, वाय. गुरुपाथ और पराक्रमको उपयोग में लाना हुआ ठीक मागपर चला जाता है तो एक दिन वह अवश्य शान्तिपूर्वक अपने निश्चित स्थानपर अयान बन्दरगाहपर पहुँच जाता है। इसी प्रकार मनुष्य का मन की कमान इन्द्रियों के विषयमपी प्रलोभन. दुष्कर्मा और कपायोम बचाता हुआ और अपना बल, वीर्य, पुरुषाय और पराक्रमको उपयोगमें लाता हुआ चला जाय तो निश्चित स्थानमोक्ष स्थानपर अवश्य पहुँच सकता है। ___ इन्द्रियों और मनका सदुपयोग या दुरुपयोग करना मनुष्य के ऊपर निर्भर है और इन्हींके मदुपयोगद्वारा एक मनुष्य अपने
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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