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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
तृतीय
है और अजरामर, निराकार, निरञ्जन, निर्लेप, कृतकृत्य, परमेष्ठी. परंज्योति. विराग, विमल, कृती आदि हो जाती है और इस प्रकारकी अवस्था उसकी सदा काल बनी रहती है अर्थात् सिद्ध पद प्राप्त करनेके बाद जीवका सारे दुःखोंसे अन्त हो जाता है
और वह परमानन्द दशाको सदाकेलिये प्राप्त कर लेता है। ___ मनुष्य, तिर्यञ्च. देव और नरक, इन चारों गतिओं और चौरासी लाख जीव योनियों मेंसे मनुष्य गति ही एक ऐसी गति है जिसके द्वारा यह जीव अपने पूर्वोक्त उद्देश्यको प्राप्त कर सकता है। और अगर कहीं इस मनुष्य-जन्मको, जिसका कि मिलना महा दुर्लभ है, यों ही गंवा दिया तो वही हाल होगा, जो चिड़ियों द्वारा खेत चुग लिये जानेपर एक किसानका होता है।
अब विवेकी बन्धुओंको इस बात का भी दिग्दर्शन कर लेना चाहिये कि मनुष्य-लन्म पाना दुर्लभ कितना है ?- समस्त लोकमें
* समस्त प्राकाशके दो विभाग है। प्राकारा वास्तवमें है तो एक ही द्रव्य, परन्तु देशभेदापेक्ष्या कल्पनया उसके दो विभाग कर लिये जाते हैं । जिनमें से एक को लोकाकाश और दूसरे को मनोकाकाश कहते है। जीव, मजीद, धर्म, अधर्म और काल, ये पाँच महादम्ये जिसमें देखी जाय-पाई जायँ, यह बोकाकाश है और जिममें ये न पाई जायें, वह अल्लोकाकाश है। अल्लोकाकाशमें जीवका गमनागमन नहीं होता। ३१ घनाकार रज्जु-प्रमाण (एक नाप-विशेष) बोकाकाशमें ही जीव प्रज्यका गमनागमन होता है।