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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
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दादोंकी कमाईको अपने ऐश-आराममें फंक दिया जाय और अन्तमें हाथ मलते-मलते जीवन-लीला समाप्त की जाय ?
क्या मनुष्य-जन्म पानेका सिर्फ यही मन्तव्य है कि धनदौलत हो. स्त्री-सन्तान हो, भोग-उपभोग हों, इन्द्रिय-मनका मुख प्राप्त हो, मान-बड़ाई हासिल हो और अन्तमें जीवन-लीला समाप्त हो जाय ?
नहीं, नहीं, मनुष्य-जन्म पानेका यह उदृश्य कदापि नहीं है। उसके पानेका बड़ा ऊँचा उद्देश्य है। क्योंकि यह जीव मांसारिक अनेक सुख, यहाँ तक कि राजा महाराजा, बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती तककी, नहीं-नहीं. देवताओं व इन्द्र श्रादि तककी ऋद्धियाँ, वैभव, ऐश्वर्य श्रादि, एक बार नहीं, दस बार नहीं. बल्कि अनेक बार भाग चुका है। पर तो भी इस जीवका मन्तव्य आज तक सिद्ध नहीं हुआ है।
दूसरे यह जीव अनादि कालसे चौरामी लाग्य जीवयोनि और करोड़ों कुलों में घूम चुका है और घुम रहा है पर आज तक इसका उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है।
तो अब प्रश्न उठता है कि मनुष्य-जीवनका मुख्य उद्देश्य क्या है ? भिन्न-भिन्न शास्त्रकारों, ऋषियों, के वलियों और जिनेन्द्र. भगवानने इस बातको एकमत होकर स्वीकार किया है कि मनुष्य जीवनका उद्दश्य चौरासी लाख जीवयोनि और करोड़ों