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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
और नाना प्रकारकी परीषहें सहते हैं, उपसर्ग सहते हैं और महान तप तपते हैं।
कुछ वाक्य-रत "दया ज्ञानकी ध्वजा है और क्रोध मूर्खताकी ध्वजा है।"
"धन्य हैं वे जो दया-शील हैं. क्योंकि वे ही परम पिताकी निज दयाके भागो हैं।"
-ईसा।
"जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तह पाप । जहाँ क्रोध तहँ काल है, जहां क्षमा तहं पाप ॥"
-कबीर।
'क्रोधको जीतनेका शम्न क्षमा है, बुराईको जीतनका शम्न भलाई है, सूमताको जीतनका शस्त्र उदारता है. और झटका जीतनका शस्त्र सच है।"
-महामारत ।
हपके साथ शोक और भय ऐसे लगे हैं, जैसे प्रकाशके संग छाया। सच्चा सुखी वही है. जिसकी दोनों एक समान है।"
-धम्मपद।