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रखण्ड]
* मुमुक्षुओंकेलिये उपयोगी उपदेश *
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(३७) अन्तरङ्गमें वीतरागका ध्यान करनेसे ध्याता वीतराग हो जाता है। इस कारण समस्त अपध्यानोंको दूर कर शुम ध्यानका प्राश्रय ग्रहण करना चाहिये । स्थान, यान, अरण्य, जन, सुख या दुःख में मनको वीतरागपनेमें जोड़ रखना चाहिये, ताकि वह सदा उसीमें लीन रहे ।
(३८) इन्द्रियों का मालिक मन है । मनका मालिक तप है और तपका मालिक निरञ्जन है। मनुष्य के पास तीन शक्तियाँ हैंमन, वचन और काय ! या यों कहना चाहिये कि मन, वचन और कायका जो पुञ्ज है, वही मनुष्य है। हैं तो ये तीन शक्तियाँ अलग अलग, किन्तु काम करती हैं मिल कर । कहने को तो ये तीनों समान अधिकार रखती हैं, पर वास्तवमें परस्परमें इनका स्वामीसेवकका संबन्ध है। मन स्वामी है और वचन और काय सेवक । मनमें जैसे कुछ भी-अच्छे या बुरे विचार आते हैं, वचन
और कायकी प्रवृत्ति वैसी ही होती है। मनुप्यके भले-बुरे बननेका कारण ही मन है--मनके विचार हैं। मनुष्य यदि सत्साहित्यका अवलोकन करंगा, साधु-सज्जन पुरुपोंके संसर्गमें आयेगा अर्थात् मनमें अच्छे विचार करेगा, तो वह अवश्य ही अच्छा बन जायगा। इसीलिये शास्त्रकारोंने एक जगह मनके विषयमें लिखा है
"मन एव मनुष्याणां, कारणं बन्धमोक्षयोः"