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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
तृतीय
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और हितरूप बोलो, ब्रह्मचर्यका पालन करो, सदा सद्भावना करते रहो; इत्योदि।
(१०) हे भव्य प्राणियो ! संसाररूपी जेलखानेमें कपायरूपी चार चौकीदार हैं। जबतक ये चारों जाप्रत हों, तबतक मनुष्य उनसे छूटकर मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकता है ?
(११) हे भव्यात्माश्रो ! वे चार कषायें इस प्रकार हैं:-१क्रोध, २-मान, ३-माया और ४-लोभ । ये चारों कषाय संज्वलन, प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान और अनन्तानुबन्धी भेदोंसे चार-चार प्रकारके हैं। संज्वलन कपाय एक पक्ष तक, प्रत्याख्यान चार मास तक, अप्रत्याख्यान एक वर्ष तक और अनन्तानुबन्धी जन्मपर्यन्त रहता है। इन कषायोंके रूपको समझकर इनका त्याग करना चाहिये ! इन चारों कपायोंमें क्रोध बहुत भयंकर है। कहा भी है कि क्रोध विशेष सन्तापकारक है, क्रोध वैरका कारण है, क्रोध ही मनुष्यको दुर्गतिमें फँमा रग्बता है और क्रोध ही श्रात्मचिन्तनमें बाधा डालता है। इसलिये क्रोधका त्यागकर शिवमुख देनेवाले अात्माका चिन्तन करो। यही मोक्षका देनेवाला है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार ईख, क्षीर, चीनी आदि बलिष्ठ रस भी सन्निपातमें दोषकी वृद्धि करते हैं, उसी प्रकार उपरोक्त कपायों से भी संसारकी वृद्धि होती है।
(१२) सिद्धान्तमें कहा गया है कि मर्म वचनसे एक दिनका तप नष्ट होता है। प्राक्षेप करनेसे एक मासका तप नष्ट होता है।