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खण्ड
* नवतत्त्व अधिकार *
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_____ कोमल, कठोर, हलका, भारी, शीत, उष्ण, चिकना और सूखा, ये आठ प्रकारके स्पर्श हैं।
खट्टा, मीठा, कड़वा, कपायला और चिरपरा, ये पाँच प्रकारके रस हैं।
सुगन्ध और दुर्गन्ध, ये दो प्रकारकी गन्ध हैं। कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत, ये पाँच प्रकारके वर्ण हैं। शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, आताप, उद्योत आदि पुद्गलोंकी एक प्रकारको अवस्थाएँ हैं।
शब्दादिकोंको अन्य दार्शनिक म्वतन्त्र द्रव्य मानते हैं, पर बाम्तवमें ऐसा नहीं है। शब्दादिक अनेक पुद्गलोंके मिलनेसे पैदा होते हैं।
द्रव्यकी व्याख्या द्रव्यका लक्षण 'सत्' है अर्थात् जो सत् रूप है, वही द्रव्य है और सत्का लक्षण है-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य-सहितत्व । तब दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिये कि जो उत्पत्ति, विनाश और मोजदगी सहित है वही द्रव्य है।
चेतन व अचेतन द्रव्यका बाह्याभ्यन्तर निमित्तके वशसे अपनी जातिको न छोड़ते हुए एक अवस्थासे दूसरी अवस्था
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ॐ"सद् द्रव्यलक्षणम्", "उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सन"-उमास्वाति ।