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खण्ड
# नवतत्त्व अधिकार *
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१६-मन, वचन और कायके निमित्तसे आत्माके प्रदेशोंके चञ्चल होनेको 'योग' कहते हैं। योगके तीन भेद हैं:-१-मनोयोग, २-वचनयोग और ३-काययोग।
१५-जीवके लक्षण रूप चैतन्यानुविधायी परिणामको 'उपयोग' कहते हैं। उपयोगके दो भेद हैं:-१-साकारोपयुक्त और २-अनाकारोपयुक्त।
१८-औदारिक आदि शरीर और भाषा आदि पर्याप्रिक योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने को 'आहार' कहते हैं।
१६-गतिमें उत्पन्न होनेको 'उपपात' कहते हैं। उपपात पाँच प्रकारका होता है:-१-नरक, २-तिर्यन्च, ३-मनुष्य, ४देव और ५-सिद्ध।
२०-जीवके एक शरीरमें रहनको स्थिति' कहते हैं। जीव की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागर है ।
२१-प्रदेशों की श्रेणीबद्ध व विना श्रेणीस जीवकी मृत्यु हानेको 'समोहाय' कहते हैं।
२२-आयु पूर्ण होनेपर एक गतिसे छूटनेको 'च्यवन कहते हैं।
२३-एक शरीरसे दूसरे शरीरमें जानेको 'गमनागमन' कहते हैं।
ये तीईस गुण प्रत्येक संसारी जीवमें होते हैं। इनके अवान्तर भेद भी ऊपर कहे गये हैं। वे किसी जीवके कितने ही होते हैं