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नवतत्त्व अधिकार मित्व, पुद्गल, पुण्य, पाप आदि तत्त्वों ( पदार्थों ) का
जो यथार्थ ज्ञान है अर्थात् श्रद्धान अथवा तथ्यतादृश स्वरूपकी जो जानकारी है, उसे 'सम्यक्त्व' कहते हैं । श्रीजिनेन्द्रदेव ने कहा है कि सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र, इन तीनों की प्राप्तिसे सिद्धपद अथवा मोक्षका उपार्जन किया जाता है ।*
* दिगम्बर सम्प्रदायमें मोक्षके कारण तो यही तीन माने गये हैं । किन्तु उनके क्रममें थोडासा अन्तर है और वह यह है कि वे सम्यग्दर्शन को सम्यग्ज्ञानसे पहले मानते हैं। यथा-"सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः"-मोक्षशास्त्र । उनका कहना है कि जबतक जीवको श्रात्माकी रुचि पैदा नहीं होती, तबतक वह तत्सम्बन्धी विशेष ज्ञान उपार्जनके लिये प्रयत्नशील नहीं हो सकता और जबतक उसका विशिष्ट ज्ञान न हो, तबतक तदनुकूल प्राचरण करना घटित नहीं होता। सामान्य ज्ञान तो सभी संसारी जीवोंको स्वतः होता ही है ।
रोगीको रोग-मुक्त होनेकेलिये प्रथम वैद्यपर श्रद्धा करनेकी अावश्यकता है। बादमें वह जो औषधोपचार बतलावे, उसका ज्ञान-स्मरण . रहना भी आवश्यक है। तत्पश्चात् तदनुकूल श्रौषधि-निर्माण-सेवन भी अति-यावश्यक है। तभी वह रोगी रोग-मुक्त हो सकता है।