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खण्ड ]
* कर्म अधिकार #
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चार मनोयोग, चार वचनयोग और सात काययोग, इन तीनोंको मिलाकर कुल पन्द्रह भेद योगके होते हैं ।
बन्धु-हेतुके कुल निम्न प्रकार ५७ भेद हुए:
मिध्यात्व के ५, अविरतिके १२, कषायके २५ और योग के १५ ।
गुणस्थानोंमें मूलबन्ध-हेतु
पहिले गुणस्थान में मिथ्यात्व आदि चारों बन्धु-हेतु पाये जाते हैं। दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें गुणस्थान में मिध्यात्वोदयके सिवाय अन्य सब बन्ध हेतु पाये जाते हैं ।
छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें गुणस्थान में मिथ्यात्वकी तरह अविरति भी नहीं पाया जाता है ।
ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थानमें कषाय भी नहीं पाई जाती है। चौदहवें गुणस्थानमें योगका भी अभाव हो जाता है ।
गुणस्थानोंमें उत्तरबन्ध-हेतु
१ - पहिले गुणस्थान में आहारिक-द्विकको छोड़कर पचपन बन्ध हेतु हैं । अर्थात् आहारिक और आहारिक मिश्र नहीं होते हैं ।
२ - दूसरे गुणस्थान में पाँचों मिध्यात्व भी नहीं होते हैं। इसीसे उनको छोड़कर शेष पचास हेतु कहे गये हैं ।