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________________ खण्ड ] * कर्म अधिकार # १५६ चार मनोयोग, चार वचनयोग और सात काययोग, इन तीनोंको मिलाकर कुल पन्द्रह भेद योगके होते हैं । बन्धु-हेतुके कुल निम्न प्रकार ५७ भेद हुए: मिध्यात्व के ५, अविरतिके १२, कषायके २५ और योग के १५ । गुणस्थानोंमें मूलबन्ध-हेतु पहिले गुणस्थान में मिथ्यात्व आदि चारों बन्धु-हेतु पाये जाते हैं। दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें गुणस्थान में मिध्यात्वोदयके सिवाय अन्य सब बन्ध हेतु पाये जाते हैं । छठे, सातवें, आठवें, नौवें और दसवें गुणस्थान में मिथ्यात्वकी तरह अविरति भी नहीं पाया जाता है । ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थानमें कषाय भी नहीं पाई जाती है। चौदहवें गुणस्थानमें योगका भी अभाव हो जाता है । गुणस्थानोंमें उत्तरबन्ध-हेतु १ - पहिले गुणस्थान में आहारिक-द्विकको छोड़कर पचपन बन्ध हेतु हैं । अर्थात् आहारिक और आहारिक मिश्र नहीं होते हैं । २ - दूसरे गुणस्थान में पाँचों मिध्यात्व भी नहीं होते हैं। इसीसे उनको छोड़कर शेष पचास हेतु कहे गये हैं ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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