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खण्ड
* कर्म अधिकार *
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में मोक्ष पानेकी योग्यता है उन्हें 'भव्य' और जिनमें योग्यता नहीं है उन्हें 'अभव्य' कहते हैं। जीवका कर्मके साथ अनादि कालसे सम्बन्ध होनेपर भी जब जन्म-मरणरूप संसारसे छूटनेका समय पाता है तब जीवको विवेक उत्पन्न होता है अर्थात् आत्मा
और जड़की बुराई मालूम होजाती है। तप-ज्ञान-रूप अग्निके बलसे वह सम्पूर्ण कम मलको जलाकर शुद्ध सुवर्णके समान निर्मल होजाता है। यही शुद्ध आत्मा ईश्वर है, परमात्मा है अथवा ब्रह्म है।
कर्म-शत्रुपर विजय अनादिकालसे कर्म-शत्रु आत्माके साथ लगा हुआ है। जब तक आत्माका छुटकारा इससे नहीं होगा, उस समय तक यह आत्मा आवागमन अर्थात् चौरासी लाख जीवयोनिके चक्करसे कभी मुक्ति नहीं पा सकता। अगर कोई पुरुषार्थी
और चतुर राजा अपने शत्रुपर विजय करना चाहता है तो पेश्तर इसके कि वह उसपर चढ़ाई करे, यह निहायत ज़रूरी है कि वह उसकी तमाम शक्तियों का अर्थात् फौज, पलटन, अस्त्र, शस्त्र, मोर्चे, गढ़ आदि और तमाम रास्ते तथा उसकी स्थितिका पूरा-पूरा अध्ययन कर ले और उसके बाद उसका मुक़ाबिला करनेकेलिये जब सारे जरूरी सामान इकट्ठ होजाय, उस समय पराक्रम और हिम्मतके साथ चढ़ाई करे। परिणाम यह होगा कि वह अवश्य कामयाब अर्थात् विजयी होगा । ठीक इसी