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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
द्वितीय
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उस समय तो उसकी सभी शक्तियाँ परिपूर्ण रूपमें प्रकाशित हो जाती हैं, फिर जीव और ईश्वरमें विषमता किस बातकी ? इस कारण कर्मवादके अनुसार यह माननेमें कोई आपत्ति नहीं कि सभी मुक्त जीव ईश्वर ही हैं।
_ 'कर्म' शब्दका अर्थ कर्मशास्त्र जाननेकी चाह रखनेवालों को आवश्यक है कि वे 'कर्म' शब्दका अर्थ, भिन्न-भिन्न शास्त्रों में प्रयोग किये गये उसके पर्याय शब्द, कर्मका स्वरूप, आदिसे परिचित हो जाय ।
'कर्म' शब्द लोक-व्यवहार और शास्त्र दोनों में प्रसिद्ध है। उसके अनेक अर्थ होते हैं। साधारण लोग अपने व्यवहारमें काम, धन्धे या व्यवसायके मतलबमें कर्म शब्दका प्रयोग करते हैं। शास्त्रमें उसकी एक गति नहीं है । खाना, पोना, चलना, कॉपना आदि किसी भी हलचलके लिये, चाहे वह जीव की हो या जड़की-कर्म शब्दका प्रयोग किया जाता है। कर्मकाण्डी मीमांसक यज्ञ, योग आदि क्रिया-कलाप अर्थम; पौराणिक लोग व्रत, नियम आदि धार्मिक क्रियाओंके अर्थमें; नैय्यायिक लोग उत्क्षेपण आदि पाँच सांकातक कर्मों में कर्म शब्दका व्यवहार करते हैं। परन्तु जैन-शास्त्र में कर्म शब्दसे दो अर्थ लिये जाते हैं। पहला राग-द्वेषात्मक परिणाम, जिसे कषाय'भावकर्म' कहते हैं और दूसरा कार्मण जातिके पुद्गल