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** जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[द्वितीय
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कहते हैं, जो प्रदेशावलम्बन करता है अर्थात् दो आदि परिमाणु मिल रहे हैं, उसे 'प्रदेश' कहते हैं, और जो छोटेसे छोटा हिस्सा, जिसका भाग न हो सके, उसे 'परिमाणु' कहते हैं।
पुद्गलके परिणमन दो प्रकारके हैं-एक सूक्ष्म परिणमन और दूसरा स्थूल परिणमन। उसके अनन्त सूक्ष्म परिणमन श्राकाशके एक ही प्रदेशमें आसकते हैं। ___ काल-द्रव्य लोकाकाशके प्रत्येक प्रदेशमें है और वह एक-एक अणु रूप है तथा भिन्न-भिन्न रहता है। पुद्गल परिमागुकी अवगाहनाके बराबर ही इसकी अवगाहना है । इसके अणु लोकाकाशके प्रदेशोंकी बराबर ही असंख्यात हैं और रत्नोंकी राशिके समान भिन्न-भिन्न हैं, तथा निष्क्रिय हैं । काल-द्रव्य अनन्त समय वाला है । यद्यपि वर्तमानकाल एक समय मात्र है परन्तु भूत, भविष्य और वर्तमानकी अपेक्षा अनन्त समय वाला है।
'समय' कालकी पर्यायका सबसे छोटा अंश है। इसके समूहस आवलो, घटिका इत्यादि निश्चयकाल द्रव्य की पर्याय हैं। व्यवहारकाल-दिन, रात यावत् सागरोपमादि काल का परिमाण सूर्यके गमनागमनसे होता है। यह सव ज्योतिषियोंका गमनागमन अढाई द्वीप ( मनुष्य लोक)के अन्दर ही है। यहाँके कालसे ही सब स्थानोंका काल-प्रमाण किया है। यह व्यवहारकाल है। मृत्युकाल सिद्ध भगवानके सिवाय सबके लगा हुआ है।