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द्वितीय खण्ड
सप्तभङ्गी बास्तुत्व के स्वरूपका सम्पूर्ण विचार प्रदर्शित करनेके
" लिये जैनाचार्यों ने सात प्रकारके वाक्योंकी योजना की है। वह इस भाँति है:१-स्यादस्ति
कदाचित् है। २-स्यानास्ति कदाचित् नहीं है। ३-स्यादस्ति नास्त कदाचित् है और नहीं है। ४-स्यादवक्तव्यम् कदाचित् अवाच्य है। ५-स्यादस्ति अवक्तव्यम् कदाचित् है बार अवाच्य है। ६-स्यान्नास्ति श्रवक्तव्यम् कदाचित् नहीं है और अवाच्य है। ७-स्यादस्तिनास्ति श्रवक्तव्यम् कदाचित् है, नहीं है और अवाच्य है।
उपरोक्त सात नयोंको घटपर उतारते हैं
१-यह निश्चय है कि घट सत् है, मगर अमुक अपेक्षासे; इस वाक्यसे अमुक दृष्टिसे घटमें मुख्यतया अस्तित्व-धर्मका विधान होता है।