SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३] के वज-त्या के सिद्धान्त कथन से दूसरे दिगम्बर जैनाचार्यों के कथन भिन्न हैं, वे सबस्त्र संयम भी बनाते हैं। ऐसा जो प्रो० सा० कहते हैं, यहां पर हम उन्हीं के कथन पर विचार करते हैं। प्रो० सा० सवस्त्र-संयम सिद्ध करने के लिये नीचे लिखे दिगम्बर शास्त्रों के प्रमाण देते हैं । वे लिखते हैं कि "दिगम्बर सम्प्रदाय के अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ 'भगवती आराधनामें' मुनि के उत्सर्ग और अपवाद मार्ग का विधान है जिसके अनुसार मुनि वस्त्र धारण कर सकता है। देखो गाथा ( ७६-८३)।" इन पंक्तियों से भगवती आराधना के आधार पर प्रो० सा० "साधु वस्त्र धारणकर सकता है" कहते हैं । परन्तु वे यदि भगवती श्राराधना की ७६-८३ गाथाओं का अर्थ अच्छी सरह समझ लेते तो मुनि को वस्त्र धारण करने की बात नहीं कहते। देखिये श्रावसधे वा अप्पाउमो जो वा महडिओ हिरिमं । मिच्छजणे सजणे वा तस्स होज्ज अववादियं लिंगं ॥ . (भगवती आराधना गाथा ७६ ) इस गाथा का अर्थ यह है कि जो पुरुष अपने ऐसे निवास स्थान में रहता है जो अनेक जनों से भरा हुआ है। अर्थात् एकांत स्थान नहीं है। और जो स्वयं श्रीमान है अर्थात बढ़ी हुई सम्पचि का स्वामी है तथा जो लज्जावान भी है।
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy