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________________ [ ४२ ] स्त्री को ही हो सकता है, द्रव्यवेद स्त्री को नहीं हो सकता । इस कथन से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि जब द्रव्यस्त्री के क्षायिक सम्यग्दर्शन ही नहीं हो सकता तो फिर चौदह गुणस्थान और मोक्ष का होना तो नितांत असम्भव है । क्योंकि बिना क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किये कोई जीव क्षपक श्रेणी नहीं माढ़ सकता है । इस लिये सर्वार्थ सिद्धिकार ने स्त्री के जो नौ गुणस्थान अथवा उपचार से चौदह गुणस्थान कहे हैं वे भाववेद से ही कहे हैं। सर्वार्थ सिद्धि में इसी विषय में और भी स्पष्ट किया गया है यथा - कुतः मनुष्यः कर्मभूमिज एव दर्शनमोहक्षपण प्रारंभको भवति । द्रव्यवेदस्त्रीणां तासां क्षायिकाऽसंभवात् ॥ ( सर्वार्थ सिद्धि पृष्ठ ११ ) इसका अर्थ यह है कि कर्मभूमि का मनुष्य ही दर्शनमोह कर्म का क्षय प्रारम्भ करता है। क्योंकि द्रव्यस्त्रीवेद के चायिक सम्यक्त्व नहीं होता है। इसी बात की पुष्टि गोम्मटसार से होती है यथादंसमोहवणा-पत्रगो कम्मभूमिजादो हि, मणुसो केवलिमूले बिगो होदि सत्र्वत्थ । दर्शनमोहक्षपणप्रारम्भकः कर्मभूमिज एव सोपि, मनुष्य एव तथापि केवलिश्रीपादमूले एव भवति || ( गोम्मटसार संस्कृत टीका पृष्ठ १०६८ गा० ६४८ ) अर्थ इसका यह है कि दर्शन- मोह प्रकृति का क्षय
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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