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[३५] कि यदि द्रव्यस्त्रियों के भाव-संयम माना जायगा तो उनके वस्त्र-सहितपना नहीं बनेगा, क्योंकि बल का ग्रहण असंयम का अविनाभावी है । अर्थात जहां वरूप-सहितपना है वहां असंयम भाव है। इससे स्पष्ट सिद्ध है कि वस्त्र रहित अवस्था में ही संयम भाव हो सकता है। द्रव्य स्त्रियोंकी वस्त्रसहित अवस्था है, इस लिये उनके संयम भाव नहीं हो सकता है।
फिर शंका उठाई गई है कि यदि द्रव्य स्त्रियोंको मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती है तो फिर उनमें चौदह गुणस्थान होते हैं यह कथन किस प्रकार सिद्ध होगा ?
__इस शंका के उत्तर में धवलाकार समाधान करते हैं कि द्रव्य स्त्रियों के चौदह गुणस्थान नहीं बताये गये हैं किन्तु भावस्त्री के चौदह गुणस्थान बताये गये हैं। अर्थात् भावस्त्री वेदयुक्त मनुष्य गति में चौदह गुणस्थान मानने में कोई विरोध नहीं आता है। जो द्रव्य-पुरुष-वेदी है और भावस्त्री-वेदी है उसके चौदह गुणस्थान होते हैं वैसा मानने में कोई आगम की बाधा नहीं है।
ऊपर लिखी हुई धवला टीका की पंक्तियों का यह हिन्दी अर्थ है और ऐसा ही हिन्दी अर्थ उस धवला टीका में छपा हुआ भी है, पाठक स्वयं देख सकते हैं। इस कथन से पट्खण्डागम के धवलाकार आचार्य महाराजने यह बिलकुल खुलासा कर दिया है कि जो स्त्रीवेद की अपेक्षा चौदह गुणस्थान बताये गये हैं वे भावस्त्री-वेदयुक्त द्रव्य-पुरुष-वेदी के