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________________ [३४] पुनः तासु चतुर्दशगुणस्थानानि इति चेन्न, भावस्त्री-विशिष्ट मनुष्यगतौ तत्सत्वाविरोधात ।” (षट्खण्डागम-प्रथम खंड-धवला टीका सूत्र ६३ पृष्ठ ३३२-३३३) इसका हिन्दी अर्थ इस प्रकार है शंका यह उठाई गई है कि हुण्डावसर्पिणी कालसम्बन्धी खियों में सम्यग्दृष्टि जीव क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में कहा गया है कि हुण्डाव-सर्पिणी काल-सम्बन्धी लियों में भी सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न होते हैं। इसके लिये यह षट्खण्डागम का आगम ही प्रमाण है। फिर शंका की गई है कि यदि इस आगम से द्रव्य स्त्रियों को सम्यग्दर्शन का होना सिद्ध होता है तो इसी आगम मे द्रव्य स्त्रियों का मुक्ति जाना भी सिद्ध हो जायगा ? उत्तर में कहा गया है कि यह बात नहीं हो सकती है क्योंकि द्रव्य स्त्रियां वस्त्र सहित रहती हैं और वस्त्र सहित रहने से उनके संयतासंयत (पांचवां) गुणस्थान होता है, इस लिये उन द्रव्यलियों के संयम (छठे गुणस्थान) की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। फिर शंका उठाई गई है कि वस्त्र सहित होते हुये भी उन द्रव्य स्त्रियों के भाव संयम के होने में कोई विरोध नहीं अाना चाहिये ? उत्तर में कहा गया है कि द्रव्य स्त्रियों के भाव संयम (छठा गुणस्थान ) नहीं है, इसका कारण यह है
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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