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[३२] परन्तु प्रो० सा० को आचार्य कुंदकुंद स्वामीका उपयुक्त कथन अपने मन्तव्य के विरुद्ध होने से सर्वथा नहीं रुचा है। अतः उन्होंने इस कथन को प्राचार्य परम्परा एवं कर्मसिद्धान्त के प्रतिकूल सिद्ध करने की चेष्टा की है। इसकी पुष्टि में उन्हों ने स्वसम्पादित षट् खण्डागम के सूत्रों का भी निर्देश किया है । परन्तु हम इस प्रकरण में युक्ति और आगम दोनों ही प्रकार से यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि दि० जैनागममें कोई भी ग्रन्थ प्रो० सा० की बातकी पुष्टि नहीं करता प्रत्युत विरोधमें सर्वत्र स्पष्ट निषेध किया गया है।
स्वयं प्रो० सा० ने जिन ग्रन्थों का उल्लेख किया है एवं जिन सूत्रों के आधारपर उन्होंने अपनी चर्चा उठाई है वे सभी उन की बात का विरोध ही करते हैं अस्तु ।
प्रो० हीरालाल जी ने जिन शास्त्रों के प्रमाणों से स्त्री-मुक्ति सिद्ध की है अब उनपर हम विचार करते हैं। सबसे पहले उन्होंने स्त्री-मुक्ति के विधान में षट् खण्डागम-धवलसिद्धान्त शास्त्र का प्रमाण दिया है। वे लिखते हैं
"दिगम्बर आम्नाय के प्राचीतम ग्रन्थ षट्खण्डागम के सूत्रों में मनुष्य और मनुष्यनी अर्थात् पुरुष और स्त्री दोनों के अलग अलग चौदहों गुणस्थान बतलाये गये हैं ।" इन पंक्तियों से प्रो० सा० ने यह बात सिद्ध की है कि जिस प्रकार मनुष्य के चौदहों गुणस्थान होते हैं उसी प्रकार मनुष्यनी (स्त्री) के भी चौदहों गुणस्थान होते हैं। इसके लिये उन्होंने