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[२४] इस बात का स्वयं दिगम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य शास्त्रों से कहां तक समर्थन होता है यह बात विचारणीय है, कुन्दकुन्दाचार्य ने अपने ग्रन्थों में स्त्री-मुक्ति का स्पष्टतः निषेध किया है किन्तु उन्होंने व्यवस्था से न तो गुणस्थान चर्चा की है और न कर्म सिद्धांत का विवेचन किया है जिससे उक्त मान्यता का शास्त्रीय चिंतन शेष रह जाता है।"
केवली भगवान के कवलाहार सम्बन्ध में प्रो० सा० ने यह पंक्ति लिखी हैं
“कुन्दकुन्दाचार्य ने केवली के भूख प्यासादि की वेदना का निषेध किया है पर तत्वार्थ-सूत्रकार (आचार्य उमास्वामी) ने सबलता से कर्म सिद्धान्तानुसार यह सिद्ध किया है कि वेदनीयोदयजन्य क्षुधा पिपासादि ग्यारह परीषह केवली के भी होते हैं।"
इस सब कथन से प्रो० सा० ने यह बात सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कुन्दकुन्दाचार्य का आचार्य उमास्वामी से जुदा ही मत है । आप केवली के भूख प्यासादिकी वेदनाको तत्वार्थ सूत्र के आधार पर सबलता से सिद्ध होना बताते हैं।
प्रो० सा० ने स्त्री-मुक्ति, सवल-मुक्ति और केवली कवलाहार की सिद्धि के लिये तत्वार्थ सूत्र, सर्वार्थसिद्धि राज. वार्तिक तत्वार्थालंकार, गोम्मटसार, भगवती आराधना, प्राप्तमीमांसा तथा षट्खण्डागम-धवल आदि सिद्धान्त शास्त्रों के प्रमाण भी दिये हैं।