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[५] परन्तु वर्तमान साहित्य-प्रसार एक ऐसी अद्भत खोज है जो अन्वेषक खोजी विद्वान्का पाण्डित्य प्रदर्शन करनेके साथ समाज को भी समालोचक कोटिमें खींच ले जाती है। और वहां स्वबुद्धि-गम्य तर्क-वितर्कों के प्रवाह में श्राद्धिक भावों की इति श्री हो जाती है। इस प्रकार की खोज से कोई भी व्यक्ति रत्नत्रय की साधना में लगा हो अथवा देव-शास्त्र, गुरु-भक्ति और उनकी पूजा आदि धार्मिक क्रिया-काण्ड में अधिक रुचिवान बना हो, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा। प्रत्युत उससे रत्नत्रय की विराधना तथा जिन मन्दिरनिर्माण, बिम्ब प्रतिष्ठा विरोध, मुनियोंमें अश्रद्धा आदि अनेक उदाहरण उपस्थित हैं। इतिहास की खोज और शासन-भेद का नया मिशन
वर्तमान में इतिहास-खोज का एक नया आविष्कार हो रहा है। वर्षों समय और बहु द्रव्य-साध्य सामग्री तथा शक्ति का उपयोग इसी ऐतिहासिक खोज में लगाया जा रहा है। यह खोज-विभाग, एक नया मिशन है। इस मिशनका उद्देश्य यही प्रतीत होता है कि जो आचार्य अथवा शास्त्र इनके मन्तव्य के विरोधी हों उन्हें अप्रमाण ठहरा कर अमान्य ठहराया जाय। इसी लक्ष्य के आधार पर अनेक आचार्यों को अमान्य ठहराने की विफल चेष्टाएँ भी की गई हैं। अमान्य ठहराने की यह नीति रक्खी गई है कि अमुक आचार्य अमुक के पीछे हुए हैं अथवा अमुक सदी में हुये हैं।