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________________ [ १२७ ] होने वाला सुख दुःख दोनों ही नहीं हैं। क्योंकि साताअसाताजन्य सुख दुःख इन्द्रिय-जन्य है परन्तु भगवान के अतींद्रिय सुख और अतींद्रिय ज्ञान है। इस कथन से बहुत स्पष्ट हो जाता है कि भगवान के अतींद्रिय, आत्मोत्थ, अनन्त, सुख क्षायिक है अतः उनके क्षुधादि वेदना का सद्भाव कभी नहीं हो सकता है। फिर एक बात हम और भी बताते हैं वह यह है कि क्षुधा पिपासा की वेदना का अनुभव किसी भी जीव को तभी हो सकता है, जब कि उसके इच्छा का सद्भाव हो। मुझे भूख लगी है अथवा प्यास लगी है, यह लगनारूप कार्य बिना इच्छा के कभी नहीं हो सकता है भले ही कोई व्यक्ति उस क्षुधा प्यास की निवृत्ति नहीं करे, उसे सहन कर लेवे, परन्तु भूख का लगना या प्यास का लगना बिना इच्छा के अनुभव में कैसे आ सकता है ? नहीं आ सकता। हमें यह मालूम नहीं है कि प्रो० सा० भगवान केवली के क्षुधादि बाधा का होना ही बताते हैं वा वे उनके कवलाहार भोजन करना भी मानते हैं। जो भी हो यह बात उन्होंने अपने लेख में प्रगट नहीं की है, परन्तु जहां क्षुधादि बाधा है वहां सातोदय से उसकी निवृत्ति भी भोजनादि से माननी पड़ेगी। फिर तो शरीर की स्थिति और शारीरिक प्राकृतिक आधार पर भगवान के और भी अनेक बातें स्वीकार करनी पढ़ेंगी? अस्तु, इन बातों पर हम कुछ भी विचार नहीं करना
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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