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यह बताया गया है कि भगवान के निरन्तर साता वेदनीय का ही उदय रहता है । इस लिये असाताके उदयसे होने वाली क्षुधादि परीब भगवान के नहीं हो सकती हैं। प्रमाण
एदेण कारणेण दुसादस्सेव हु गिरंतरो उदयो । तेरासादणिमित्ता परीसहा जिणवरे णत्थि ॥ ( गोम्मटसार कर्म० २७५ गाथा )
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अर्थ ऊपर किया जा चुका है ।
कर्मसिद्धान्त के प्रधान प्रतिपादक आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त - चक्रवर्ती जब यह कहते हैं कि क्षुधादि बाधा असातोदय में होती है। भगवान के असातोदय नहीं है, इस लिये उनके क्षुधादि परीषह नहीं हैं । तब प्रो० सा० भगवानके क्षुधादि बाधा किस कर्म के उदय से बताते हैं और किस आधार से बताते हैं सो स्पष्ट करें ? तब आगे विचार किया जा सकता है ।
फिर भगवान के साताकर्म का उदय भी आत्मा में सुख पैदा करता हो यह भी नहीं है। वहां तो साता साताजन्य सुख दुःख का लेश भी नहीं है । यथा
uge रायोसा इंदियणाणं च केवलिम्मि जदो । तेरा दुसादासादज सुख दुःखं गत्थि इंदियजं ॥
( गो० क० २७३ )
रागद्वेष और इन्द्रिय साता अलावा से
अर्थात- केवली भगवान के ज्ञान नष्ट हो चुका है । इस लिये उनके