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________________ [ १२२ ] श्लोक - वार्तिककार ने जो किया है उससे भगवान अर्हन्त के क्षुधादि की बाधा सिद्ध नहीं होती है। प्रो० सा० इस सूत्र से भगवान के क्षुधादि बाधा का होना किस आधार पर सिद्ध करते हैं ? सभी टीकाओं से और इतर सभी प्रन्थोंसे क्षुधादि बाधा का होना भगवान के श्रसम्भव है । 1 लाभान्तरायस्या - शेषस्य निरासात् परित्यक्त-कवलाहारक्रियाणां केवलिनां यतः शरीर - बलाधानहेतवोऽन्य- मनुजासाधारणाः परमशुभाः सूक्ष्माः अनंताः प्रतिसमयं पुगनाः सम्बन्धमुपयान्ति स क्षायिको लाभः (सर्वार्थसिद्धिः पृ० ६१) अर्थात् - लाभान्तराय कर्म के क्षय होने से केवली भगवान के कवलाहार वर्जित होने से उनके शरीर के बलाथान के कारण भूत जो अन्य मनुष्यों में नहीं पाये जा सकें ऐसे परम शुभ, सूक्ष्म, अनन्त पुल परमाणु प्रति समय सम्बन्ध करते रहते हैं यही उनके क्षायिक लाभ है } इसके सिवा जो केवली भगवान के ३४ अतिशय बताये गये हैं उनमें १० अतिशय केवलज्ञान के हैं उनमें एक अतिशय कवलाहार का नहीं होना भी है । अतः हम तो यहां तक कहते हैं कि केवल तत्वार्थसूत्र ही क्यों किसी भी दिगम्बर जैन शास्त्र एवं किसी भी दिगम्बर मैन आचार्य के मत से प्रो० सा० केवली भगवान के क्षुधादि बाधा सिद्ध नहीं कर सकते हैं । इसके आगे वे लिखते हैं
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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