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सवन मुक्ति का निषेध किया है वह कर्मसिद्धांत से वैसा सिद्ध नहीं होता और दूसरे प्राचार्यों के मत से भी मेल नहीं खाता । परन्तु इन सब बातों का खण्डन हम अनेक प्रमाणों से कर चुके हैं और यह बात खुलासा कर चुके हैं कि कर्म सिद्धान्त के आधार पर तथा गुणस्थान-क्रम-रचना के आधार पर स्त्री-मुक्ति और सवस्त्र-संयम किसी प्रकार सिद्ध नहीं होता है। साथ ही यह भी बता चुके हैं कि भगवान कुन्दकुन्दाचार्य का शासन दि० जेनधर्म में प्रधान है। उनकी मान्यता सर्वज्ञ प्रणीत आगम के आधार पर है और किसी भी ग्रंथ प्रणेता आचार्य का उनके सिद्धान्त से मतभेद नहीं है।
"केवली को भूख प्यास लगती है अब इस बात की सिद्धि में वे भगवान अकलंकदेव विद्यानन्दि और पृज्यपाद इन महान् आचार्योंके लिये भी यह लिख रहे हैं कि इनका लिखना सिद्धान्त के अनुसार नहीं है।'
अब तो यह कहना चाहिये कि कर्मसिद्धांत के रहस्य को प्रो० सा० के सिवा कोई भी नहीं समझना होगा सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्र आचार्य ने भी केवली के क्षुधा प्यास लगने का पूर्ण खण्डन किया है। प्रो० सा० उन्हें भी कर्मसिद्धान्त के ज्ञाता नहीं समझते होंगे। दि० जैनधर्म में जितने भी आचार्य हुए हैं, उन सबों से प्रो० सा० का मत विरुद्ध है। इस लिये उनके खयाल से वे शायद सभी कमसिद्धांत के