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________________ [ १११ ] अर्थात-द्रव्य-स्त्री के संयम नहीं हो सकता है, क्योंकि वह सचेल अर्थात् वस्त्र धारण किये हुए रहती है। और भी देखिये "द्रव्यत्रीणां निर्वृत्तिः सिद्धयेदितिचेन्न-सवासस्त्वादप्रत्याख्यान-गुणस्थितानां संयमानुपपत्तेः भावसंयमस्तासां सवाससामप्यविरुद्ध इति चेत, न तासां भावसंयमोस्ति भावासंयमाविनाभावि-वस्त्राद्युपादानान्यथानुपपत्तेः।" (धवलसिद्धान्त सत्प्ररूपणा पृष्ठ ३३३) अर्थ-द्रव्य-सियों के मोक्ष जाना भी सिद्ध होगा? शंकाके उत्तर में धवलसिद्धान्तकार कहते हैं कि नहीं; अर्थात द्रव्य-स्त्री मोक्ष इस लिये नहीं जा सकती कि वह वस्त्र नहीं छड़ सकती है। आगे फिर भी शंका उठाते हैं कि वे यदि ६त्र भी धारण किये रहें तो भाव संयम उनके (द्रव्य स्त्रियों के ) हो जायगा, इस में क्या बाधा है ? आचार्य कहते है कि वस्त्रों का धारण करना असंयमभाव का अविनाभावी है। वस्त्र धारण करनेसे संयमभाव नहीं हो सकता है किंतु असंयमभाव ( एक देश संयम ) ही रहता है। इस धवलसिद्धान्त के कथनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि संयम प्राप्ति के लिये एवं मोक्ष प्राप्ति के लिये वस्त्र-त्याग अनिवार्य आवश्यक कारण है। मुनियों के क्षुधा-पिपासा आदि वावीस परीषहों का सहन करना बताया गया है उनमें एक नाग्न्य ( नग्न रहना)
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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