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________________ १४ कर्मग्रन्थोनी रचना कोई एक आचार्यनी कृति के समकाले थयेल आचार्योनी कृति नधी, पण सैकाओने गाळे थयेल जुदा जुदा आचार्योनी ए कृतियो छे. एटले अत्यारे कर्मग्रन्थोने जे sant अर्थात् कर्मविपाक पहेलो कर्मग्रन्थ, कर्मस्तव बीजो कर्मग्रन्थ एम छए कर्मग्रन्थोने नम्बर बार गोठवायेला आपणे जोईए छीए ए क्रम कर्मविषयने लगता ज्ञाननी सगवडताने लक्षीने आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए गोठवेलो लागे छे, मौलिक नथी. प्राचीन कर्मग्रन्थो पैकीनो शतक कर्मग्रन्थ आचार्य श्रीशिवशर्मसूरिनी कृति छे ज्यारे सप्ततिका कर्मग्रन्थ श्रीचन्द्रर्षिमहत्तरनी रचना छे, कर्मविपाक ए श्रीमर्षिमहर्षिनी कृति छे त्यारे आगमिकवस्तुविचारसार उर्फे षडशीति कर्मग्रन्थ ए श्रीमान् जिनवल्लभगणिनी रचना छे. वीजा त्रीजा कर्मन्थना प्रणेता कोण ? ए संबंधे कशो उल्लेख मळी शकतो नथी, तेम छतां अमने एम लागे छे के कर्मविपाकनी रचना थया पछी आ बे कर्मग्रन्थोनी रचना थई होबी जोईए. आ रीते एकंदर जोतां विक्रमना त्रीजा के चोथा सैकाथी लई विक्रमनी बारमी सदी सुधीमा थयेल जुदा जुदा आचार्यो द्वारा आ कर्मग्रन्थोनी रचना उत्क्रमणी ज करायेल होई अत्यारे चालतो कर्मग्रन्थोनो क्रम आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिना नव्यकर्मग्रन्थो रचाया पछी ज रूढ थवानो संभव वधारे छे. अने अमारी मान्यता मुजब कर्मग्रन्थोनो अत्यारे प्रचलित क्रम आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिथी ज चालु थयो होवो जोईए. घता ए नव्य कर्मग्रन्थोनी विशेषता - प्राचीन कर्मग्रन्थकार आचार्योए पोताना कर्मथोमा जे विषयो वर्णवेला छे ते ज विषयो नव्यकर्मप्रन्थकार आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए पोताना कर्मप्रथोमा वर्णवेला छे. तेम छतां आचार्य श्री देवेन्द्रसूरिना कर्मग्रन्थोमां विशेके प्राचीन कर्मग्रन्थकारोए जे विषयोने अतिस्पष्ट रीते, परन्तु एटला लांबा करी वर्णव्या छे, जे सामान्य रीते कण्ठस्थ करनार अभ्यासीओने अतिकंटाळो आपे; त्यारे तेज विषयोने आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए पोताना कर्ममन्थोमां एक पण बिषयने पडतो मूक्या सिवाय, एटलं ज नहि पण वीजा अनेक विषयोने उमेरीने, दरेक अभ्यासी सहजमां समजी शके एवी स्पष्ट भाषापद्धतिए अतिसंक्षेपथी प्रतिपादन कर्या छे, जेनो अभ्यास करवामां अने याद करवामां तेना अभ्यासीओने अतिश्रम के कंटाळो न लागे. प्राचीन कर्मग्रन्थोनी गाथासङ्ख्या अनुक्रमे १६८, ५७, ५४, ८६ अने १०२ नी छे ज्यारे नव्य कर्मग्रन्थोनी गाथासङ्ख्या अनुक्रमे ६०, ३४, २४, ८६ अने १०० नी छे. चोथा अने पांचमा कर्मग्रन्थोनी गाथासत्या प्राचीन कर्मग्रन्थोना जेटली जोई कोईए एम न मानी लेवु के - 'प्राचीन चोथा अने पांचमा कर्मग्रन्थ करतां नव्य चतुर्थ पचम कर्मप्रन्थोमां शाब्दिक फरक सिवाय बीजुं कांइ ज नहि होय.' किन्तु आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए पोताना नव्य कर्मग्रन्थोमां प्राचीन कर्मग्रन्थोना विषयोने जेटला टुंकावी शकाय तेटला काव्या पछी, तेना षडशीति अने शतक ए बे प्राचीन नामोने अमर राखवाना इरादायी कर्ममन्थना अभ्यासीओने अति मददगार थई शके एवा विषयो उमेरीने ड्यासी अने
SR No.010087
Book TitleChatvara Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1934
Total Pages289
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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