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टिप्पणियाँ
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जिस दिशा की ओर वह नजर फेंकता है, उसमें से वह धन प्राप्ति की संभावना को ढूँढ़ता है। उसे सारा जगत धनरूप ही भासित होता है। जड़ते पक्षियों के पंखों, जाति-जाति की : वितकियों और खुडी टेकड़ियों, नहरें निकालने जैसी नदियों, तेल निकालने जैसे कुँधों, जहाँ बहुत लोग खाते हैं ऐसे तीर्थस्थानों आदि सबको वह धन प्राप्ति के साधन के रूप में उत्पन्न हुआ मानता है । चिच की ऐसी दशा को छोग समाधि कह सकते हैं।
कोई रसायन शास्त्री जगत में जहाँ-तहाँ रासायनिक क्रियाओं के ही परिणाम रूप सबको देखता है। वह शरीर में, वृक्ष में, पत्थर में, आकाश में, सब जगह रसायन का हो चमत्कार देखता है। ऐसा कह सकते हैं कि उसकी रसायन में समाधि लग गई है ।
कोई आदमी हिंसा से ही जगत के व्यवहार को देखता है। बड़ा जीव छोटे को मारकर ही जीता है, ऐसा वह सब जगह निहारता है । " बलवान को ही जीने का अधिकार है" ऐसा नियम वह दुनिया में देखता है। उसकी हिंसा भावना में ही समाधि लग गई समझना चाहिए ।
नियम पर ही अथवा विकृत
फिर कोई आदमी सारे जगत को प्रेम के रचा हुआ देखता है । द्वेष को वह अपवाद रूप में रूप में देखता है। संसार का शाश्वत नियम- संसार को स्थिर रखनेका नियम- परस्पर प्रेमवृत्ति है, ऐसा ही उसे दीखता है। उसके चित्र की प्रेम-समाधि है ।