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________________ १८ बुख शंगे। बुद्ध को जब इस बात की खबर लगी, तब उन्होंने कहा : “मितुओ, मेरे शरीर के लिए चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं नहीं चाहता कि मेरे शिष्य डरकर मेरे शरीर की रक्षा करें। इसलिए पहरा न देकर सब अपने-अपने काम में लगे ।" २१. हाथीपर विजय : कुछ दिनों के बाद बुद्ध अच्छे हो गए। लेकिन देवदत्त ने पुनः एक हाथी के नीचे दबाने का विचार किया। बुद्ध एक गली में free लेने को निकले कि सामने से देवदत्त ने राजा का एक मत्त हाथी उन पर छोड़ दिया। लोग इधर-उधर भागने लगे । जिसे जो जगह दीखी वह वहीं चढ़ गया। बुद्ध को भी ऊपर चढ़ जाने के लिए कुल भिक्षुओं ने आवाज दी। लेकिन बुद्ध तो दृढ़ता से जैसे चलते ये वैसे ही चलते रहे। अपनी संपूर्ण प्रेमवृत्तिका एकीकरण कर उन्होंने सारी करुणा अपनी आँखों में से हाथी पर बरसाई। हाथी अपनी सूँड़ नीचे कर एक पालतू कुशे की तरह बुद्ध के आगे खड़ा गया। बुद्ध ने उसपर हाथ फेरकर प्यार जताया। हाथी गरीब बन वापस गजशाला में अपने स्थानपर जाकर खड़ा हो गया। J दण्डेनेके दमयन्ति अंकुसेहि कसाहि च । erदण्डेन असत्थेन नागो दनो-महेसिना || - पशुओं को कोई दण्ड से, अंकुश अथवा लगाम से वश में रखते हैं, लेकिन महर्षि ने बिना दण्ड और शस्त्र ही हाथी को रोक दिया ।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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