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________________ कुछ प्रसंग मौर निर्वाण 新 राजा के समक्ष अपने संघ की एक सी के खो जाने की फरियाद की और बुद्ध तथा उसके शिष्यों पर शक प्रकट किया। राजा के आदमियों ने शव की तलाश की और उसे बुद्ध के बिहार के पास ढूँढ़ निकाला। थोड़े समय में सारे शहर में यह बात फैल गई और बुद्ध तथा उनके freysों पर से लोगों का विश्वास उठ गया। हर कोई उनके ऊपर थू-थू करने लगा । ५५ ९. इससे बुद्ध जरा भी नहीं डरे । ' झूठ बोलनेवाले की पाप के सिवा दूसरी गति नहीं है' यह जानकर वे शान्त रहे । १०. कुछ दिनों बाद जिन हत्यारों ने वैरागिन का खून किया था वे एक शराब के अड्डे पर जमा होकर खून करने के लिए मिले हुए धन का बँटवारा करने लगे। एक बोला : “मैंने सुन्दरी को मारा है इसलिए मैं बड़ा हिस्सा लूँगा ।" दूसरा बोला : “यदि मैं गला न दबाया होता तो सुन्दरी चिल्लाकर हमारा भंडाफोड़ कर देती ।" ११. यह बात राजा के गुप्तचरों ने सुन ही। उन्हें पकड़ कर राजा के पास ले गए। हत्यारों ने अपना अपराध स्वीकार कर जो कुछ हुआ था कह दिया । बुद्ध पर लगाया गया अपराव मिथ्या साबित होने से उनके प्रति पूज्यभाव और भी बढ़ गया और पहले के सब वैरागियों का तिरस्कार हुआ ।
SR No.010086
Book TitleBuddha aur Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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